भूकंपनीयता और भूकंप पूर्वसंकेत कार्यक्रम एक अनुसंधान प्रवृत्त कार्यक्रम है जिसका दीर्घकालिक उद्देश्य भूकंप-विज्ञान से संबंधित अध्ययनों को गति प्रदान करना है।
अत: यह आवश्यक है कि विभिन्न भूकंप पूर्व संकेत संबंधी तथ्यों और भूकंप उत्पन्न करने वाली प्रक्रियाओं के बीच संभावित संबंध को समझने में आगे और सहायता करने के लिए 12 वीं योजना अवधि में इन प्रयासों को जारी रखा जाए।
भूकंप सक्रिय क्षेत्रों में दीर्घकालिक, व्यापक बहु-मानदंडीय भू-भौतिकीय प्रेक्षण करने, वास्तविक समय पर डेटा का विश्लेषण करने और विभिन्न भूकंप पूर्व संकेत संबंधी तथ्यों और भूकंप उत्पन्न करने वाली प्रक्रियाओं के बीच संभावित संबंध स्थापित करने हेतु एक मॉडल तैयार करने के लिए प्रयास किए जाएंगे।
भ्रंश क्षेत्रों के इतिहास को पुन: संरचना में पुरा-भूकंप विज्ञान एक उपयोगी उपकरण है और अब इसका प्रयोग कई सक्रिय क्षेत्रों में पूर्ववर्ती की भूकंपीय उत्पादकता का आकलन करने के लिए किया जा रहा है। भूकंप अध्ययन के अपेक्षाकृत नए क्षेत्र, पुरा भूकंप-विज्ञान की तकनीकों और डेटिंग तकनीकों में उन्नति से पूर्व के भूकंपों के समय और आकार संबंधी बेहतर आकलन और आवर्तन मॉडल के विकास में सहायता मिल रही है। अत: पुरा भूकंप-विज्ञान संबंधी अन्वेषण, विशेषकर, हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत में भूकंप अध्ययन के प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में महत्वपूर्ण हैं। हिमालय क्षेत्र में पुरा भूकंप-विज्ञान संबंधी अन्वेषण पूर्व के स्लिप (स्खलन) और प्रकट सेकेंडरी स्लिप (स्खलन) की पहचान करने और उन्हें भ्रंश/भूकंप स्रोत क्षेत्रों के साथ संबद्ध करने तथा डिकौलमेंट (शिराच्छेदन) और वेज़ विरूपण की भूमिका को ध्यान में रखते हुए भूकंप के आकार का परिकलन करने पर केंद्रित होगा। उपसतही संरचनाओं, विशेषरूप से डिकौलमेंट (शिराच्छेदन) और रैंप संरचनाओं की ज्यामिति की व्याख्या करने के लिए संतुलित अनुप्रस्थ काट और अन्य संभावित भू-भौतिकीय तकीनीकों जैसे उथला परावर्तन द्वारा क्षमता संवर्धन होगा। अंतत: जीपीएस स्लिप मॉडलों को इन प्रेक्षणों के साथ एकीकृत किया जाए ताकि हिमालय में स्लिप (स्खलन) और भूकंप आवृत्ति के मॉडल विकसित किए जा सकें।
अंडमान सबडक्शन जोन में विवर्तिकी और भूकंप आने की प्रक्रिया के बारे में हमारी जानकारी काफी कम है। हमें इसके लिए निम्न को समझना होगा:
आगामी दशक में जिन विशिष्ट कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किए जाने की आवश्यकता है उनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
भारत का भूकंप विवर्तनिक एटलस दर्शाता है कि यहां पर क्षेत्रीय सीमा में 66 से भी अधिक नवविवर्तनिक/सक्रिय भ्रंश हैं। हिमालयी क्षेत्र जो कि 2400 कि मी तक फैला है, 15 प्रमुख सक्रिय भ्रंशों में विभाजित है जो कि हिमालयी उपनति के समानांतर और अनुप्रस्थ दोनों ओर फैले है। इनमें से अधिकांश हिमालयी पर्वतोत्पत्ति के अंतिम चरण के दौरान अस्तिव में आए और अभी भी तनाव संचयन और नियुक्ति में सक्रिय हैं। सिंधु गंगा और ब्रहमपुत्र के मैदानों में 16 विवर्तनिक रूप से सक्रिय भ्रंश हैं जिनके अंश सामान्यतया जलोढ की मोटी परत के नीचे छिपे हुए मिलते है। प्रायद्वीपीय भारत में लगभग 130 नवविवर्तनिक भ्रंश हैं जो कि अधिकांशत: पुरा-विभ्रंश प्रणालियों तक सीमित हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जो कि भारत के भूकंप जोन पांच के अंतर्गत आता है, के क्षेत्रीय सीमा में तीन उत्तर-दक्षिण उपनति भ्रंश हैं और पूर्वोत्तर क्षेत्र में दो सक्रिय भ्रंश हैं । उपरोल्लिखित भ्रंश कुछ अन्य छिपे हुए भ्रंशों के साथ-साथ भारत की भूकंपनीयता को शासित करते हैं। अत:, यह आवश्यक है कि इन विवर्तनिक विच्छिन्नताओं का उनके वर्गीकरण और विशेषता –वर्णन सहित मिशन के रूप में व्यवस्थित अध्ययन किया जाए ताकि भूकंप के स्रोत जोनों की पहचान की जा सके और भूकंपीय हानियां का आकलन किया जा सके।
भारतीय उपमहाद्वीप की कई भूवैज्ञानिक विशिष्टताएं हैं और उनमें से हिमालयी संघट्टन पर्वत श्रृंख्ला अत्याधिक महत्वपूर्ण है। इस संघट्टन का विवर्तनिक प्रभाव न केवल पर्वत उत्पत्ति पर दिखाई देता है अपितु ये पृष्ठ प्रदेश (तिब्बत) और इंडियन शील्ड (अग्र प्रदेश) तक भी संचारित होता है। सीए 55 एमए पर भारत और एशिया के संघट्टन से क्षेपण और विकास तथा क्रिटिकल टेपर जिसके पर्वत श्रृंख्ला के भीतर संघट्टन-उपरांत विर्वतनिकी पर वास्तविक प्रभाव की स्पष्ट जानकारी नहीं है, के टूटने से हिमालय पर्वत श्रृंख्ला का निर्माण हो रहा है। यही नहीं, एशिया में भारतीय स्थलमंडल के सतत् संघटट्न उपरांत अध: क्षेपण और हिमालयी पर्वत/श्रृंख्ला के वेज़ के अग्र प्रदेश की और बढ़ने से भारतीय शील्ड ओर प्रतिबल संचरित हो रहा है जो अग्रप्रदेश बेसिन (गंगा-ब्रहमपुत्र), अग्रभाग में उभार (फोरबल्ज) (नर्मदा-सोन) प्रकुंच भ्रंशन (अरावली) के निर्माण और पठार उत्थापन (मेघालय) तथा हाल की भूकंपनीयता में संघट्टन-उपरांत विरूपण का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
भारतीय स्थलमंडल कई विशिष्टताएं हैं जैसे दक्कन बन्ध के वृहत् उद्भेन के परिणामस्वरूप मैंटल का नि:शेषण होना, असामान्य रूप से पतला महाद्वीपीय पर्पटी और स्थलमंडल होना, निष्क्रिय महाद्वीपीय किनारे का विस्तृत मार्ग जिसके महासागरीय पर्पटी में परिवर्तन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है और हिमालय जो कि संघट्टन पर्वत श्रृंख्ला का आदि प्ररूप है और जिसका स्थलमंडल वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय है। नवविवर्तनिकी विरूपण, विशेष रूप से जो संघट्टन –उपरांत भूपृष्ठ विरूपण से संबंधित है, प्रायद्वीप के उत्तरी भाग और हिमालय में विशेष रूप से तलहटी क्षेत्र जहां पर क्रिटीकल टेपर विरूपित हो रहा है, दोनों ही स्थानों पर विवर्तनिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। विवर्तनिक, विवर्तनिक भू-स्थलाकृति विज्ञान और पर्पटीय गतिशीलता के अनुसंधान का जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदा संबंधी अध्ययनों के संबंध में अत्यधिक महत्व है। भारतीय संदर्भ में महाद्वीपीय संघट्टन विवर्तनिकी के विषय पर विशेष ध्यान दिए जाने हेतु अनुसंधान के लिए निम्नलिखित विस्तृत सामायिक विषयों का चयन किया गया है:
राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र ,
भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र, हैदराबाद
शैक्षणिक संस्थान और विश्वविद्यालय
(करोड़ रु.)
योजना का नाम | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | कुल |
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भूकंपनीयता और भूकंप पूर्व संकेत | 30.00 | 35.00 | 45.00 | 45.00 | 45.00 | 200.00 |
Last Updated On 06/08/2015 - 12:23 |