भारतीय ईईजेड के पर्यावरण और उत्पादकता पैटर्न की निगरानी पर परियोजनाओं को जारी रखने के अलावा कोच्चि के मुहानों और तटीय जल के जीव भू रासायनिक पक्षों पर समय श्रृंखला के अध्ययन, मॉडलिंग की दो परियोजनाएं अर्थात् तटीय अप वेलिंग प्रणालियां – एसईएएस और लक्षद्वीप के गर्म पूल पारिस्थितिक तंत्र को सीएमएलआरई तथा आईसीएमएएम के सहयोगात्मक कार्य के बीच में 12वीं योजना के दौरान लेने का प्रस्ताव किया गया है।
क) उद्देश्य
समुद्री सजीव संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र, कोच्चि; एनआईओ – गोवा / मुंबई; सीयूएसएटी– कोच्चि; सीएएस – अन्नामलाई; केयूएफओएस – कोच्चि; आईसीएमएएम – चेन्नई।
इस कार्यक्रम को सीएमएलआरई द्वारा समन्वित एक बहु संस्थागत योजना के रूप में कार्यान्वित किया जाएगा। भारतीय ईईजेड को 6 प्रमुख पारिस्थितिकी प्रणालियों के नियमित माप ऑनबोर्ड एफओआरवी सागर संपदा से कवर किया जाएगा। कोच्चि तट के साथ एसआईबीईआर कार्यक्रम के भाग के रूप में समय श्रृंखला मापन किए जा रहे हैं। एनआईओ – गोवा और सीएमएलआरई मिलकर अंडमान के हाइड्रोजैविक अध्ययनों तथा बीओबी के एडिज़ पर ध्यान केन्द्रित करेंगे। लक्षद्वीप के गर्म पूल (एलईआई) का अध्ययन और मॉडलिंग का कार्य सीएमएलआरई द्वारा किया जाएगा। भारतीय प्रायद्वीप के सिरे पर इकोटोन का अध्ययन सीएमएलआरई और सीयूएसएटी द्वारा किया जाएगा। बीओबी के जिलेटिनी जूप्लेंक्टन और एएस का अध्ययन क्रमश: सीएएस और केयूएफओएस द्वारा किया जाएगा। सीएमएलआरई द्वारा विकसित खुले मॉडलों को आईसीएमएएम के तटीय समुद्री मॉडलों के साथ एकीकृत किया जाएगा।
एसईएएस और एलआईई के लिए पारिस्थितिकी तंत्र मॉडल
एसईएएस और एलआईई के लिए ट्रोफोडाइनेमिक मॉडल
तृतीयक उत्पादन पर मॉडल
पेलाजिक मछली और चयनित टूना के लिए पूर्वानुमान मॉडल
विश्व के महासागरों में एचएबी की आवृत्ति और सीमा में वृद्धि होने का विश्वास है। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों और समुद्री बायोटा पर इन ब्लूम के संभावित परिणामों को पहचानते हुए एचएबी पर अंतर शासकीय पैनल (आईपी-एचएबी) आईओसी ने अनुसंधान के प्रबलन क्षेत्र के रूप में एचएबी के अध्ययन किए हैं। भारत द्वारा 1998 से भारतीय ईईजेड में एचएबी निगरानी का कार्य किया जा रहा है और इसके 12वीं योजना अवधि के दौरान भी जारी रहने का प्रस्ताव है। इस योजना की निरंतरता महत्वपूर्ण है, क्योंकि एचएबी के ओएमजेड में फैलाव पर प्रभाव पड़ने की आशंका है।
सीएमएलआरई – कोच्चि; आईएनसीओआईएस; सीएएस – अन्नामलाई; आईआईएसईआर – कलकत्ता;, केरल विश्वविद्यालय; कोचीन विश्वविद्यालय; सीआईएफटी – कोच्चि; गोवा विश्वविद्यालय; एसएसी – अहमदाबाद; सेलवम आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, नमक्कल ।
सीएमएलआरआई द्वारा खुले समुद्र के एचएबी तथा तटीय विश्वविद्यालयों द्वारा खुले समुद्र के एचएबी की निगरानी की जाएगी। एचएबी सिस्ट के अध्ययन केरल विश्वविद्यालय द्वारा किए जाएंगे। सीआईएफटी एचएबी विषाक्तता अध्ययन करेगा। उपग्रह आधारित पुन: प्राप्ति एल्गोरिथ्म बनाने का प्रयास एसएसी द्वारा किया जाएगा। सीएमएलएआरई और आईएनसीओआईएस द्वारा एचएबी मॉडलिंग की जाएगी।
प्रजाति विशिष्ट एचएबी मॉडल
एचएबी के लिए प्रणाली की प्रतिक्रिया का मूल्यांकन करने के लिए मॉडल
एचएबी सिस्ट की पहचान और संरक्षण
समुद्री तल पर अनेक प्रकार के जीव पाए जाते हैं जिनसे तृतीयक उत्पादन में पर्याप्त योगदान मिलता है। जैव विविधता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होने के अलावा ये जीव अनेक डेमर्सल मछली प्रजातियों के लिए भोजन भी बनाते हैं। तल में किए जाने वाले प्रचालनों से लगातार समुद्र के तल में विघ्न पैदा होता है और यह बेंथोस और मछली उत्पादन के लिए निरंतर खतरा पैदा करते हैं। भारतीय ईईजेड के शेल्फ और ढलाव वाले क्षेत्रों के समुद्री बेंथोस का एक डेटाबेस एमएलआर योजना के तहत तैयार किया गया है, जिसे समय समय पर पुन: मूल्यांकन की जरूरत होती है।
2500 मीटर गहरे क्षेत्रों तक बेंथोस पर अध्ययन सीएमएलआरई द्वारा किया जाएगा। अंडमान और निकोबार को पॉन्डीचेरी विश्वविद्यालय द्वारा और सीएमएलआरई द्वारा लक्षद्वीप को कवर किया जाएगा। माइक्रोबेंथोस और खनिज की प्रक्रिया पर अध्ययन सीयूएसएटी द्वारा किया जाएगा।
समुद्री बेंथोस पर डिजिटल सूचना प्रणाली
मछली पकड़ने के मौसम की समाप्ति पर सलाह
भारतीय ईईजेड के समुद्री बेंथोस पर एटलस
वर्तमान में हमारा मछली उद्योग 100 से 150 मीटर की गहराई तक सीमित है, इस तथ्य के बावजूद कि इसके आगे वाले क्षेत्रों से लगभग एक मिलियन टन मछलियों की प्राप्ति हो सकती है। एमएलआरपी द्वारा किए गए अध्ययन में इन संसाधनों की वाणिज्यिक स्तर पर प्राप्ति के लिए आशाजनक परिणाम दर्शाए गए हैं। इसके बावजूद इन संसाधनों को टेम्पोरल और स्थानिक स्तरों पर ज्ञात करना अनिवार्य है और गहरे समुद्र में मछलीपालन की परामर्शिका से पहले इनकी वृद्धि गतिकी को प्रसारित किया गया है। भारत में दूरदराज के स्थानों पर पानी में मछलीपालन को एसओ के क्रिल संसाधनों जैसे संभावित संसाधनों के सर्वेक्षण और आकलन के माध्यम से केन्द्रित करने की आवश्यकता है, यहां मिक्टोफिड संसाधन अरब सागर में, मध्य हिंद महासागर में टूना के संसाधन आदि हैं। इसका लक्ष्य वाणिज्यिक दोहन पर परामर्शिका प्रदान करना है।
समुद्री सजीव संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र; कोच्चि; आईएनसीओआईएस; सीआईएफटी; सीएमएफआरआई; केयूएफओएस; सीयूएसएटी
सभी सर्वेक्षण एफओआरवी सागर सम्पदा पर सवार होकर किए जाएंगे । गहरे समुद्र में डिमर्सल प्रचालनों हेतु एक्सपो मॉडल ट्रॉल तथा एचएसडीटी (सीवी) जैसे मानक गियरों का उपयोग किया जाएगा । मिक्टोफिड तथा क्रिल सर्वेक्षण एक आयातित क्रिल नेट का उपयोग करके किए जाएंगे । सिफ्ट के एमडब्ल्यूटी पर भी प्रायोगिक आधार पर प्रयास किए जाएंगे । ध्वनिक तथा क्रिल सर्वेक्षणों के संयोजन से बायोमास के अनुमान के प्रयास किए जाएंगे ।
गहरे समुद्र फिशर परामर्श
हार्वेस्टिंग मिक्टोफिड संसाधनों के लिए परामर्श।
मिक्टोफिड पर पूर्व हार्वेस्ट टेक्नोलॉजीज
क्रिल हार्वेस्टिंग और उपयोग पर सलाह
पर्यावरण के लिए मॉडल सहसंबंधी मात्स्यिकी
3.6.5.5 दक्षिणी महासागर एमएलआर
दक्षिणी महासागर (अंटार्कटिक महाद्वीप के दक्षिण में 55 डिग्री द.तक) एक अनोखी विशेषताओं वाला महासागर है। इसके जीवित संसाधन कमिशन फॉर कंर्जेवेशन ऑफ अंटार्कटिक मरीन लिविंग रिसोर्सिस (सीसीएएमएलआर) के सदस्य देशों द्वारा स्थायी रूप से इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जो 27 देशों का एक अंतरराष्ट्रीय निकाय है। भारत का प्रतिनिधित्व सीएमएलआरई द्वारा किया जाता है जो 1984 से सीसीएएमएलआर का सदस्य है। दक्षिणी महासागर पारिस्थितिक तंत्र में अंर्टाकटिक क्रिल यूफोसिया सुपर्बा का प्रभुत्व है, जो फूड वेब की प्रमुख प्रजाति है। वाणिज्यिक रूप से महत्वपूर्ण मछलियों में टूथ फिश (पेटागोनियन टूथ फिश), आइस फिश (कैम्पोसोसिफेलस गुन्नारी), मेकरल फिश आदि शामिल हैं जिनका दोहन किया जा रहा है। पुन:, दक्षिणी महासागर की अनोखी विशेषताएं और सजीव संसाधनों के अनुकूलन इन परिवेशों को जैविक अनुसंधान का महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाते हैं जिसमें नए सूक्ष्मजीवों तथा अन्य जैव सक्रिय सामग्रियों और अणुओं की पहचान पर फोकस होता है। दक्षिणी महासागर का अधिकांश भाग मोटी बर्फ की पर्त से ढका होता है, फिर भी गर्मी के मौसम के दौरान संसाधनों का दोहन संभव है। दक्षिणी महासागर के मोर्चो और क्षेत्रों की पहचान इन संसाधनों के दोहन की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है। उचित योजना और प्रबंधन के माध्यम से भारत दक्षिणी महासागर के मछली पकड़ने के बेड़ों के स्रोत का मार्ग परिवर्तन कर सकेगा जो दूरस्थ मछली पकड़ने का क्षेत्र है (मध्य हिंद महासागर, पश्चिमी अरब सागर आदि), जिससे भारतीय ईईजेड के अंदर मछुआरों पर मछली पकड़ने के दबाव में कमी आ सकती है।
क) उद्देश्य
सीएमएलआरई – कोच्चि, एनआईओ – गोवा, सीएमएफआरआई – कोच्चि, सीआईएफटी – कोच्चि, आईआईएसईआर – कोलकाता, सीएएस – अन्नामलाई विश्वविद्यालय, एनबीएफजीआर – लखनऊ आदि।
ग) कार्यान्वयन योजना
हर वर्ष गर्मी, मानसून के दौरान पश्चिमी भारतीय क्षेत्र तथा दक्षिणी महासागर के दक्षिण – पूर्वी अटलांटिक क्षेत्र के नौवहन आयोजित किए जाएंगे। इन नौवहन में राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभागिता सुनिश्चित की जाएगी। एफओआरवी सागर संपदा और / या किराए पर लिए गए जहाजों का उपयोग इन अध्ययनों में तब तक किया जाएगा जब कि नए मछली पकड़ने के महासागर जहाज कमीशन नहीं किए जाते। एक बार दोहन योग्य संसाधनों के अभिज्ञात हो जाने और आर्थिक विवरणी मूल्यांकन से निजी मछली पालन उद्योगों को एक प्रमुख गतिविधि के रूप में दूरदराज के पानी से मछली पकड़ने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा। समवर्ती रूप से अनुसंधान और विकास प्रयासों से इन जीवों में पाई गई सामग्रियों पर जैव सक्रिय अणुओं के निष्कर्षण किए जाएंगे तथा उक्त मूल्यवर्धित उत्पादों का वाणिज्यीकरण किया जाएगा।
आईटीआईएस – भारत के कार्यक्रम घटकों में शामिल हैं (i) महासागर जैव भूगोलीय सूचना प्रणाली (ओबीआईएस), हिंद महासागर- समुद्री जीवन की गणना (आईओ – सीओएमएल), एफओआरवी डेटा एंड रेफरल सेंटर (सीएमएलआरई) और राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय और वर्गीकरण केंद्र (एनएमएम – टीसी)। सीएमएलआरई इंडोबिस और सीओएमएल के कार्यान्वयन के लिए आईओसी से मान्यता प्राप्त नोडल एजेंसी है।
सीएमएलआरई, कोच्चि; एनआईओ, मुंबई; एमएस यूनिवर्सिटी; आईएनसीओआईएस; एनबीएफजीआरआई; जेडएसआई; आईआईएसईआर; सीएमएफआरआई; केयूएफओएस; सीएएस अन्नामलाई; आईआईएससी – बैंगलोर; सीयूएसएटी; आदिकवि यूनिवर्सिटी; गोवा यूनिवर्सिटी; एनआईओ – मुंबई; आंध्र यूनिवर्सिटी; इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस; सीएआरआई; पोर्ट ब्लेयर; पॉन्डीचेंरी यूनिवर्सिटी, पोर्ट ब्लेयर।
ओबीआईएस और सीओएमएल 2010-11 के दौरान आरंभ की गई गतिविधियां है और 12वीं योजना अवधि के दौरान इन्हें जारी रखना प्रस्तावित है। ओबीआईएस का लक्ष्य एक परिष्कृत पैमाने पर हिंद महासागर से प्रजातियों के रिकॉर्ड पर एक सूचना प्रणाली विकसित करना है। सीएमएलआरई में ओबीआईएस पोर्ट को ओबीआईएस की अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट से जोड़ा जाएगा और यह विश्व महासागर जैव-भौगोलिक सूचना प्रणाली के एक घटक के रूप में होगा। सीओएमएल कार्यक्रमों के माध्यम से हिंद महासागर से प्राप्त सभी समुद्री यूकेरियोट के डीएनए फिंगर प्रिंट तैयार किए जाएंगे और इन्हें जीन बैंक में जमा किया जाएगा। एफओआरवी डेटा और रेफरल केन्द्र सीएमएलआरई की जारी गतिविधि है, जिसमें एमओआरवी सागर संपदा के विभिन्न जहाजों के माध्यम से डेटा और नमूने एकत्र किए जाते हैं, इनका संकलन, क्वालिटी जांच और भविष्य के संदर्भ हेतु भंडारण / संरक्षण किया जाता है। एमएलआर के तहत की जाने वाली / प्रस्तावित व्यापक वर्गीकरण गतिविधियों के साथ यह प्रस्तावित है कि नए सीएमएलआरई परिसर में भारत के लिए एनएमएम-टीसी की स्थापना की जाए, जो भारत में समुद्री वर्गीकरण और जैव विविधता अध्ययनों का केन्द्र बनाएगा। एनएमएम-टीसी समुद्री महासागर को भी अनुपूरकता प्रदान करेगा जिसे आस पास के स्थल में केरल सरकार द्वारा स्थापित किया जाना है।
हिंद महासागर पर जैव भौगोलिक सूचना प्रणाली
हिंद महासागर से प्रमुख समूहों के लिए कैटलॉग
हिंद महासागर समुद्री संग्रहालय
एमएलआर-टीडी के तहत विभिन्न प्रौद्योगिकी विकास परियोजनाएं जैसे प्रौद्योगिकी; ब्लैक लिप मोती उत्पादन, सजावटी मछलियों का प्रजनन और पालन, संकटापन्न समुद्री गेस्ट्रोपोड को द्वीप पर रहने वालों के लाभ के विचार से लिया गया है। समुद्री कार्यक्रम से दवाओं की दिशा में जैव सक्रिय सामग्रियों का निष्कर्षण और गहरे समुद्री जीवों से इनकी प्राप्ति का प्रयास किया जाएगा। इसमें फोकस का एक अन्य क्षेत्र बायो एकॉस्टिक्स के क्षेत्र में एक विशेषज्ञता की स्थापना करना है।
समुद्री सजीव सं¬¬साधन और पारिस्थितिकीय केंद्र, कोच्चि; सीएएस-एमबी; सीएमएफआरआई; सीयूएसएटी; अमृता संस्थान; एनआईओ, कोच्चि; विज्ञान संस्थान-मुंबई; वीआईटी-वेल्लोर; सीआईएफटी-कोच्चि; आईआईटी, दिल्ली; एनपीओएल, कोच्चि।
ब्लैक लिप मोती उत्पादन और इसका वाणिज्यीकरण संयुक्त रूप से सीएमएफआरआई तथा सीएमएलआरई द्वारा किया जाएगा। सीएमएलआरई के क्षेत्र स्टेशन अगाती पर समुद्री सजावटी मछलियों के लिए हेचरी प्रौद्योगिकी को सुदृढ़ बनाया जाएगा। सीएमएलआरई और सीएएस अन्नामलाई सहयोगी एजेंसियां होंगी। जैव सक्रिय अणुओं और सामग्रियों को गहरे समुद्र से प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा और इन्हें ऑनबोर्ड एफओआरबी सागर संपदा पर संकलित किया जाएगा। सीएमएलआरई, एनपीओएल, आईआईटी – दिल्ली और सीयूएसएटी-डीओई द्वारा बायो एकॉस्टिक को संयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जाएगा।
काले मोती के उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी
समुद्री सजावटी मछली के प्रजनन एवं पालन पर प्रौद्योगिकी
समुद्री बायोटा से एक या अधिक बायोएक्टिव अणु और सामग्री
समुद्र से औषधियों की प्राप्ति मंत्रालय का एक जारी कार्यक्रम है जो पिछली कुछ योजना अवधियों से चल रहा है। अब तक तटीय जल में मिलने वाले जीवों से जैव सक्रिय अणुओं के निष्कर्षण पर ध्यान केन्द्रित किया गया था। चूंकि एफओआरवी सागर संपदा गहरे पानी से उक्त नमूनों के संग्रह में शामिल है (1500 मीटर की गहराई तक से), इसमें हमारी गतिविधियों को गहरे समुद्र के सूक्ष्मजीवों और जीवों तक विस्तारित करने की गुंजाइश है, जिससे निश्चित रूप से नए अणुओं और औषधियों को पाने की अधिक संभावना है। आरंभ में सीएमएलआरई का ध्यान इन जीवों के संग्रह और नियमित नमूने लेने पर केन्द्रित होगा और यदि इन निष्कर्षों में आशाजनक संभाव्यता प्राप्त होती है तो इन्हें आगे छानबीन, पृथक्करण और शुद्धिकरण के लिए निष्कर्ष समुद्र कार्यक्रम से औषधियों के केन्द्रीय समूह में भेजे जाएंगे। पुन:, सीएमएलआरई में सूक्ष्मजीवों के आनुवंशिक प्रकटन की विशेषज्ञता है और इन जीवों का बृहत संवर्धन किया गया है। इन जीवों के वाणिज्यिक स्तर पर संवर्धन और दोहन इन कार्यक्रमों में सीएमएलआरई का महत्वपूर्ण योगदान होंगे। सीएमएलआरई समुद्र कार्यक्रम से औषधियों को जमा करने के लिए सभी वाउचर नमूनों के संग्रहालय के रूप में कार्य करेगा। सीएमएलआरई में औषधि अनुसंधान पर उत्कृष्टता केन्द्र की स्थापना का भी प्रस्ताव है।
सीएमएलआरई –कोच्चि, अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस- कोच्चि, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, सीयूएसएटी, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस-मुम्बई के साथ समुद्री अनुसंधान से औषधियों को निकालने में संलग्न समूह।
गहरे समुद्र से सूक्ष्मजीव और सूक्ष्म शैवाल के संग्रह का कार्य एफओआरवी सागर संपदा का उपयोग करते हुए 1500 मीटर की गहराई तक मानक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए किया जाएगा। आरंभिक निष्कर्षण और जैव सक्रियता का परीक्षण समुद्री अनुसंधान समूहों से औषधियों द्वारा स्थापित प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किया जाएगा। सूक्ष्म शैवाल और सूक्ष्मजीवों के बड़े पैमाने पर संवर्धन से संभावित जीवों की वाणिज्यिक स्तर की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाएंगे। मानकीकृत संवर्धन तकनीकों का पालन करते हुए आनुवंशिक प्रकटन का प्रयास किया जाएगा। आरोहण संख्या के साथ विशेष संग्रहालय में सभी वाउचर नमूनों का रखरखाव किया जाएगा। चरणगत रूप से आरंभ करते हुए 12वीं योजना में औषधि अनुसंधान पर उत्कृष्टता केन्द्र स्थापित किया जाएगा।
(करोड़ रु. में)
योजना का नाम | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | कुल |
---|---|---|---|---|---|---|
समुद्री सजीव संसाधन और निर्माण | 38.00 | 44.00 | 28.00 | 22.00 | 18.00 | 150.00 |
Last Updated On 04/30/2015 - 11:13 |