कोंफसफजोर्डन एक बर्फीला आर्कीपेलेगो है जिसकी लंबाई लगभग 40 कि.मी. और चौड़ाई 5 से 10 कि.मी. है, यह आर्कटिक (स्वालबार्ड) का एक ग्लेशियल जॉर्ड है। यह स्पिट्स बर्गन के उत्तर प्रश्चिमी तट, स्वालबार्ड के मुख्य द्वीप पर है और यह स्थान अटलांटिक के आर्कटिक के साथ ठण्डे पानी से मिलने के स्थान पर है जहां पानी गर्म होता है। सिल के बिना यह एक खुला जॉर्ड होने के नाते शेल्फ के पास के प्रक्रमों से बहुत अधिक प्रभावी होता है। पश्चिमी स्पिट्बर्गन की धारा और अंदरूनी जॉर्ड पर ग्लेशियल पिघलते मीठे पानी से रूपांतरित अटलांटिक जल (टीडब्ल्यूए) जॉर्ड की लंबाई के साथ बहुत अधिक तापमान और लवणता गुणांक बनाता है। दक्षिणी पवन तट के पास डाउन वेलिंग उत्पन्न करती है और इससे शेल्फ तथा जॉर्ड के बीच आदान प्रदान की प्रक्रिया में बाधा आती है, जबकि उत्तर दिशा से पवन टीडब्ल्यूए पानी की ओर तट की ओर ऊपरी पर्त से नीचे बहती है। गर्मी के मौसम में पिघले हुए पानी से न केवल पानी का ऊपरी कॉलम ठोस बनता है बल्कि इससे धुंधलेपन में भी उल्लेखनीय बदलाव होता है। इससे फाइटोप्लेंकटन बायोमास और प्राथमिक उत्पादन में मौसम पर गहरा प्रभाव होगा। इस प्रकार अटलांटिक पानी के साथ (गंदले) टाइडल ग्लेशियर के पिघले हुए पानी के बीच मौसम के आधार पर एक परिवर्ती अंत: क्रिया होगी जो अंतर वार्षिक समय पैमाने पर होती है और इससे जॉर्ड के पैलेजिक पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ने की संभावना होती है। वैकल्पिक रूप से बैंथिक पारिस्थितिकी तंत्र से जॉर्ड हाइड्रोग्राफी और तलछटीकरण में दीर्घ अवधि के बदलाव से प्रभाव पड़ने की आशा है।
जब से भारत ने आर्कटिक क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक गतिविधियां आरंभ की हैं, अध्ययन का एक प्रमुख स्थान कोंफसफजोर्डन प्रणाली रही है। वैज्ञानिक अनुसंधान के विस्तार पर विचार करते हुए स्थानीय स्तर पर इसे किया गया और यह एक वास्तविकता है कि जॉर्ड के समेकित अध्ययन को नॉर्वेजियन पोलर इंस्टीट्यूट (एनपीआई) के परामर्श से स्वाल बार्ड अनुसंधान कार्यक्रम (एसएसएफ), एनसीएओआर के एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में पहचाना गया है जिसमें वर्ष 2009-10 के दौरान जॉर्ड पर एक बड़े दीर्घ अवधि कार्यक्रम की शुरूआत की व्यवहार्यता खोजी गई। एनसीएओआर द्वारा 2010 के ग्रीष्मकाल के दौरान जॉर्ड की हाइड्रो डायनेमिक, हाइड्रो केमिकल और जैविक विशेषताओं पर बुनियादी पृष्ठभूमि डेटा संग्रह का कार्य शुरू किया गया था। प्राप्त किए गए शुरूआती डेटा के उत्साहवर्धक परिणामों और एनपीआई की सकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण भारत का प्रस्ताव दीर्घ अवधि के राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में अध्ययन कार्यान्वित करने की योजनाओं में परिवर्तित हुआ है।
अध्ययन के समग्र उद्देश्य में एक दीर्घावधि व्यापक भौतिकी, रसायन, जैविक और वायुमंडलीय मापन कार्यक्रम की स्थापना की योजना बनाई गई है :
राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र, गोवा
यह प्रस्तावित है कि भारतीय पक्ष की ओर एनसीएओआर और एनआईओ के अधीन तथा नॉर्वेजियन पक्ष से एनपीआई द्वारा कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जाए। मूरिंग की तैनाती और इसके रखरखाव का कार्य एनआईओटी / आईएनसीओआईएस के साथ संपर्क में किया जाएगा। कोंफसफजोर्डन जॉर्ड के मध्य क्षेत्र में एक महासागर वातावरण मूरिंग दीर्घ अवधि मापन के लिए तैनात की जाएगी। शुरूआती पांच वर्ष की अवधि में मूरिंग की जाएगी, जिसे निष्पादन के आकलन के बाद अगले पांच वर्ष तक बढ़ाया जाएगा। इससे जलवायु में बदलाव के मुद्दे को संबोधित करने में मदद मिलेगी।
प्रस्तावित वैज्ञानिक अध्ययनों से आर्कटिक और पारिस्थितिक तंत्र प्रतिक्रियाओं, यदि कोई हो, के रूप में अल्पावधि जलवायु भिन्नताओं में जलवायु बदलाव की घटना को समझने में वैश्विक समुदाय के जारी प्रयासों में उल्लेखनीय योगदान मिलेगा।
ड) बजट आवश्यकता : 57 करोड़ रु.
(करोड़ रु. में)
योजना का नाम |
2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 |
कुल |
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जलवायु परिवर्तन के अध्ययन के लिए आर्कटिक में कोंफसफजोर्डन प्रणाली की लंबे समय तक निगरानी |
11.00 | 11.00 | 16.00 | 7.00 | 12.00 | 57.00 |
Last Updated On 04/24/2015 - 14:09 |