भारतीय उपमहाद्वीप के परिप्रेक्ष्य में, हिमालय इस क्षेत्र की जलवायु तथा मौसम को नियन्त्रित करता है तथा यह प्रमुख मौसम प्रणालियों नामत: शीतऋतु के दौरान पश्चिमी विक्षोभों (डब्ल्यूडी) तथा ग्रीष्मकाल में मानसून परिघटनाओं को संचालित करता है। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में भारी हिमपात की घटनाएं तथा तदुपरान्त इस क्षेत्र में हिमस्खलन इस क्षेत्र के निवासियों के जान-माल को प्रभावित करता है। सैन्य प्रचालनों हेतु भी इस का रणनीतिक महत्व है। इसकी स्थालाकृति से मौसमी घटनाओं में वृद्धि होती है जिसके कारण यह क्षेत्र बादल फटने, अचानक बाढ़ आने तथा भू-स्खलन के प्रति अधिक प्रवण हो जाता है। इस क्षेत्र विशेष के प्रयोक्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु, सतह तथा उपरितन वायु प्रेक्षण प्रणालियों का एक इष्टतम नेटवर्क रखना महत्वपूर्ण है। जम्मू, मनाली तथा ससोमा में उपरितन वायु-स्टेशनों व श्रीनगर, शिमला, देहरादून, गंगटोक तथा इटानगर में स्थित मौसम-वैज्ञानिक केन्द्रों से मौजूदा सतह प्रेक्षण ही इस विशिष्ट क्षेत्र की मौसम पूर्वानुमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध है और अपर्याप्त हैं। इस क्षेत्र में सतह तथा उपरितन वायु प्रेक्षणों का एक बढ़ा हुआ नेटवर्क उन्नत मौसम पूर्वानुमान सेवाओं का मार्ग प्रशस्त करेगा। पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि मौसम तथा प्रबंधन प्रैक्टिसेस के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। विभिन्न संगठनों/संस्थानों के सहयोग से आईएमडी सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र में जम्मू और कश्मीर से त्रिपुरा तक राज्य तथा जिला स्तर पर एग्रोमेट परामर्शिकाएं जारी करता है। सम्पूर्ण क्षेत्र में इन सेवाओं में सुधार हेतु, कौशलपूर्ण पूर्वानुमान अत्यावश्यक है जिसे उच्च-विभेदन संख्यात्मक मौसम मॉडलों के साथ ही संवर्द्धित प्रेक्षण प्रणालियों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
डीआरडीओ की हिम तथा अवधाब अध्ययन स्थापना के प्रयासों के सहयोग से भारत मौसम-विज्ञान विभाग
इस परियोजना के कार्यान्वयन से इस क्षेत्र को प्रभावित करने वाली विभिन्न मौसम प्रणालियों की सटीक रूप से पहचान करने, उन्हें पकड़ने तथा उनकी निगरानी करने में मदद मिलेगी तथा इससे बेहतर मौसम पूर्वानुमान तथा चेतावनियां प्रदान करने में भी मदद मिलेगी। उन्नत डेटा संग्रह तथा पुरालेखन से भविष्य के लिए इस क्षेत्र के उन्नत जलवायु-विज्ञान को तैयार करने में मदद मिलेगी। अतिरिक्त ग्राउण्ड ट्रूथ की उपलब्धता से, संख्यात्मक मॉडलों के पूर्वानुमानों का सत्यापन अधिक यथार्थवादी तरीके से किया जा सकता है, जो कि बदले में पर्वत मौसम-वैज्ञानिक सेवाओं को उन्नत बनाने में मदद करेगा। भारी वर्षा/बादल घटने के संबंध में उन्नत डेटा संग्रह, पूर्वानुमान तथा चेतावनियां से सैन्य प्रचालनों, कृषि, पर्यटन, सीमा सड़क तथा संचार, ऊर्जा उत्पादन, जल प्रबंधन, पर्यावरण अध्ययनों तथा जनसामान्य जैसे अनेक सेक्टरों को मदद मिलेगी। ये सभी जल-मौसम-वैज्ञानिक जोखिमों से निपटने की तैयारी तथा संकट प्रशमन योजना बनाने में भी मदद करेंगे।
(रुपए करोड़ में)
योजना का नाम | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | कुल |
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हिमालयी मौसम-विज्ञान | 30 | 60 | 100 | 60 | 50 | 300 |
Last Updated On 05/25/2015 - 16:54 |