क)उद्देश्य :
श्रीलंका के दक्षिण के आसपास केंद्रित हिंद महासागर में जियोड लो की उत्पत्ति और प्रकृति का अध्ययन करना।
औचित्य : जियोड पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की एक समविभव सतह है, जो कि कम से कम वर्ग अर्थों में वैश्विक माध्य समुद्र स्तर में बेहतर रूप से फिट बैठती है। हाल ही में गुरुत्वाकर्षण मॉडल और उपग्रह आधारित अवलोकनों से पता चला है कि जियोड -100 मीटर से +100 मीटर तक की अंडाकार आकृति के ऊपर बढ़ता है और गिर जाता है। उपसतह की घनत्व विषमताओं के कारण जियोड में तरंगे उत्पन्न होती हैं और लंबी तरंगदैर्ध्य जियोड विसंगतियों को अधिकांशत: वर्तमान मटेंल घनत्व विषमताओं का रूप समझा जाता हैं। इनका गहरी मेंटल और प्रक्रियाओं की भौतिक और रासायनिक गुणों पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जो मेंटल संवहन, प्लेट टेक्टोनिक्स आदि जैसी परिघटना के लिए जिम्मेदार है। इस प्रकार, वैश्विक भू गतिशील अध्ययन में बड़ी तरंगदैर्ध्य जियोड विसंगतियों को समझना महत्वपूर्ण है।
वैश्विक भू गतिशीलता के संदर्भ में, गुरुत्वाकर्षण लो का महत्व होने के बावजूद, इस विसंगति का कोई व्यवस्थित अध्ययन शुरू नहीं किया गया है। आसपास के क्षेत्र में उपलब्ध भूकंपीय स्टेशन काफी कम हैं और काफी दूरी पर हैं और क्षेत्र में कोई समुद्र तल वेधशालाएं (ओबीओ) नहीं हैं। विशेष रूप से केंद्रीय लो पर किरण पथ अल्प हैं।
यह प्रस्ताव किया गया है इस लो भाग में वैश्विक भूकंपीय नेटवर्क (आईआरआईएस के समान) के साथ-साथ दो प्रकार के भूकंपीय एरों की उत्तर-दक्षिण रेखा के साथ एक, श्रीलंका और दक्षिण भारत में, छागोस- लेकाडाइव पर, और अन्य एरे की इसके साथ-साथ लाइन ओर्थोगोनल पर तैनाती की जाए,। इस लेटर लाइन के 2500 से 3000 कि.मी. के बाद हर 100-200 कि मी पर इस रेखा के साथ समुद्र तल वेधशालाएं बनाने का प्रस्ताव है। पूर्वी भाग में समुद्र तल वेधशालाएं अंडमान-सुमात्रा सबडक्शन क्षेत्र के बारे में और अधिक जानकारी प्रदान कर सकती हैं।
योजना का नाम | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | कुल |
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पृथ्वी पर सबसे बड़े जियोड लो की उत्पत्ति की खोज | 20.00 | 20.00 | 7.00 | 4.00 | 3.00 | 54.00 |
Last Updated On 06/08/2015 - 10:43 |