महाराष्ट्र, पश्चिम भारत में स्थित कोयना बांध आधान प्रवर्तित भूकंपनीयता (आरटीएस) का सर्वाधिक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां पर 1962 में शिवाजी सागर झील के अवरुद्धीकरण के बाद से 20×30 वर्ग किमी के सीमित क्षेत्र में प्रवर्तित भूकंप आ रहा हैं। इसमें 10 दिसंबर 1967 का लगभग 6.3 तीव्रता का सबसे बड़ा भूकंप, 5 से अधिक तीव्रता वाले 22 भूकंप, लगभग 4 तीव्रता वाले लगभग 200 भूकंप और 1962 से आने वाले कम तीव्रता वाले कई हजार भूकंप शामिल हैं। 1993 में निकटवर्ती वरना तालाब के अवरुद्धीकरण के बाद आरटीएस में और वृद्धि हो गई। भूकंपनीयता लगभग ऊपरी 10 किमी की गहराई तक सीमित है लेकिन मुख्यत: पृथ्वी के भूपृष्ठ के ऊपरी 7 किमी पर है। यह स्थल सक्रिय है। अंतिम बार 12 दिसंबर 2009 को 5.1 तीव्रता का भूकंप आया है। कोयना बांध के 50 कि मी के भीतर भूकंपीय कार्यकलापों का कोई अन्य स्रोत नहीं है। इस कारण से यह भूकंप अध्ययनों के लिए आदर्श और प्राकृतिक प्रेक्षणशाला है। ऐसे क्षेत्र में जहां दो महत्वपूर्ण बांध हैं, लगभग 5 तीव्रता वाले भूकंपों का बार-बार आना इस क्षेत्र में निगरानी और विस्तृत अध्ययन के महत्व को रेखंकित करता है।
आरटीएस हेतु रन्ध्र तरल दाब में परिवर्तन की भूमिका को कई अध्ययनों और प्रयोगों द्वारा रेखांकित किया गया है तथापि प्रवर्तित भूकंपों के निकट-क्षेत्रों में प्रत्यक्ष प्रेक्षण सीमित होने के कारण इन मुद्दों पर हमारी समझ मुख्यत: सैद्धांतिक गणनाओं और मॉडलिंग पर आधारित है। साथ ही, तरल दाब क्षेत्र, इसमें होने वाली भिन्नताओं और भूकंपों के साथ इनकी संगतता की जांच करने के लिए उपलब्ध डेटा भी सीमित है। यही नहीं, विभिन्न भू-वैज्ञानिक पर्यावरणों में शीयर फेल्योर (अपरूपण) की तुलना में तरल-प्रवृत्त (हाइड्रॉलिक) दरार के सापेक्ष महत्व और घर्षणी स्थिरता को कम करने में रन्ध्र तरल दाब और तापमान के संबंध में कोई निश्चितता नहीं है।
केटीबी, कोटा, सफोद (एसएएफओडी) और विश्व के कई अन्य स्थानों पर अत्यंत गहरे नितल वेध-छिद्र अन्वेषणों ने गहरी महाद्वीपीय पर्पटी की प्रक्रियाओं और पृथ्वी की आंतरिक संरचना की समझ को बढ़ा दिया है तथा हमें महाद्वीपीय भूपृष्ठ पर गहराई में भ्रंश लक्षण-वर्णन और भ्रंश व्यवहार, पर्पटी में भंगुरता से तन्यता आना, गहरी पर्पटी के तरलों, स्थलमंडलीय संरचना और विरूपण, संघट्ट संरचनाएं और विस्तृत निर्वापन, ज्वालामुखी और तापीय अंतरण प्रक्रियाओं की प्रकृति के बारे में उपयोगी जानकारी भी प्राप्त हुई है।
नितल वेध-छिद्र अन्वेषणों के महत्व को समझते हुए यह प्रस्तावित है कि निरंतर और केन्द्रित भूकंपनीयता वाले क्षेत्र में नितल वेध-छिद्रों में कई प्रेक्षण किए जाएं। यह कार्य आईसीडीपी के सहयोग से किया जाएगा और इसमें भूकंप से पहले, भूकंप के दौरान और भूकंप के पश्चात् प्रतिबल क्षेत्र, छिद्र तरल दाब और इसकी भिन्नताओं, ताप प्रवाह और इसकी भिन्नताओं, भ्रंशों के उन्मुखीकरण, तरलों की रासायनिक विशेषताओं का अध्ययन शामिल है। प्रस्तवित वेध-छिद्रों से (1) जब यह प्रत्याशित हो कि वेध-छिद्र के एकदम निकट लगभग 3 तीव्रता के कुछ भूकंप आएंगे, 4-5 वर्ष तक वेध-छिद्र पर कार्य करने के उपरांत प्राप्त डेटा के प्रेक्षण और विश्लेषण, (2) भूकंप आने पर इसके पास और दूर के क्षेत्र में डेटा और अस्थायी भिन्नताओं तंत्र के मॉडल का विकास करने में सहायता मिलेगी।
भूकंपीय गहराइयों पर भ्रंश क्षेत्र के भीतर प्रत्यक्ष रूप से सतत् प्रेक्षणों से आसन्न भूकंप से पहले संभावित तथ्यों के बारे में मौजूद सिद्धांतों का परीक्षण और विस्तार करने में सहायता मिलेगी साथ ही, भ्रंश सुदृढता के नियंत्रण में तरल दाब, आंतरिक चट्टान घर्षण, रासायनिक क्रियाओं और सक्रिय भ्रंश क्षेत्रों की भौतिक स्थिति की भूमिका का भी मूल्यांकन किया जाएगा। इन अध्ययनों से क्षेत्रीय पैमाने पर और विशिष्ट भ्रंशों के बीच स्थिर प्रतिबल अंतरण और भूकंप प्रवर्तन के संशोधित मॉडल तैयार किए जा सकेंगे, जिनकी बड़े पैमाने के भूकंपों के पश्चात् मध्यावधि भूकंप-जोखिम की भविष्यवाणी करने हेतु आवश्यकता होती है। थ्यों न भूकंप से पहले संभावित phics
दीर्घकालिक भ्रंश क्षेत्र निगरानी और भूकंप के स्त्रोत के सतत् प्रेक्षण के द्वारा भूकंप दरार के विज्ञान जिसमें तरल दाब में परिवर्तन, भ्रंश-सामान्य ओपनिंग मोड, और अति न्यून स्पंदन अवधि में भिन्नता जैसे क्षणिक परिवर्तन भी शामिल होंगे, के लिए मॉडलों में सुधार किया जा सकेगा। इन प्रेक्षणों का प्रयोग प्रत्यक्ष: निकट-क्षेत्र में तीव्र भू-स्पंदन (आयाम, आवर्ती और अस्थायी विशेषताएं) की बेहतर भविष्यवाणी करने और गतिज प्रतिबल अंतरण तथा दरार फैलाव हेतु अधिक विश्वसनीय मॉडल तैयार करने में किया जा सकता है। पश्चवर्ती प्रक्रियाएं, ऐसा माना जाता है कि भूकंप के आकार (अर्थात कम तीव्रता वाला भूकंप अधिक तीव्रता वाले भूकंप में परिवर्तित होगा या नहीं) को नियंत्रित करता है और इसलिए भूकंप जोखिम के दीर्घकालिक संभावित मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण है।
नितल वेध-छिद्र अन्वेषण, जो कि लगभग 15-20 वर्षों तक जारी रहेंगे, दक्कन ज्वालमुखीयता और विस्तृत निर्वापन; स्थलमंडल में तापीय संरचना और प्रतिबल की स्थिति; पश्चिमी तटीय क्षेत्र में भूतापीय संभावनाओं तथा क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के भूतापीय रिकार्ड के बारे में भी जानकारी प्रदान करेंगे। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस प्रस्तावित पहल की अनुमानित लागत लगभग 400 करोड़ रुपए होगी।
(करोड़ रु.)
योजना का नाम | 2012-13 | 2013-14 | 2014-15 | 2015-16 | 2016-17 | कुल |
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कोयना-वरना क्षेत्र में नितल वेध – छिद्र अन्वेषण | 20.00 | 60.00 | 80.00 | 120.00 | 120.00 | 400.00 |
Last Updated On 06/01/2015 - 11:32 |