‘भारतीय ईईजेड के पर्यावरण और उत्पादकता पैटर्न’ पर एक ‘'एटलस’’ तैयार किया गया। यह एटलस वर्ष के विभिन्न मौसमों को कवर करते हुए भारतीय ईईजेड की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं पर व्यापक सूचना उपलब्ध करवाता है। भारतीय ईईजेड की मत्स्य संभावना को सृजित करने के लिए सीएचएल-ए, प्राथमिक उत्पादकता, माध्यमिक उत्पादकता तथा बेंथिक उत्पादकता पर स्वस्थाने डेटा के साथ संयोजन में उपग्रह से प्राप्त क्लोरोफ्लि ए डेटा का उपयोग किया जाता है। मत्स्य का 04:32 मिलियन टन का अनुमान ज्यादा मजबूत और विश्वसनीय है क्योंकि यह अनुमान एक वर्ष के विभिन्न मौसमों को कवर करते हुए भारतीय ईईजेड के प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अलग अलग लगाए जाते है। मॉडल में 5-32 प्रतिशत तक की विश्वसनीय हस्तांतरण क्षमता का इस्तेमाल किया गया है।
भारतीय ईईजेड में हानिकारक शैवाल की घटना का कारण त्रिचोडेस्मियम, नॉक्टिलुका, जिमनोडिनियम, गोंयूलक्स, सोचलोडिनियम और चट्टोनेल्ला से संबंधित प्रजातियां हैं। राष्ट्रीय एचएबी कार्यक्रम के तहत, देर से आने वाले शीत मानसून (फरवरी) और जल्दी आने वाले अंतर-मानसून (मार्च-अप्रैल) के दौरान अरब सागर के उत्तरी क्षेत्र में सालाना आधार पर खिलने वाली शैवाल की बहु प्रजातियों की व्यापक पुनरावृत्ति और इस क्षेत्र के जैव भू रासायनिक चक्र और मछलियों पर इनके प्रभाव की जांच की जा रही है। भारत के विभिन्न तटीय जलों में ऐसे अनेक हानिकारक शैवाल खिलने की सूचना दी गई है, जैसे कि कोच्चि से दूर नॉक्टिलुका ब्लूम (30 किमी क्षेत्र)-(10-18 सितम्बर 08), गोवा से दूर नॉक्टिलुका ब्लूम (20 किमी चौड़ा) (3-05 अक्तूबर 08), मैंगलोर से दूर गोनियालुक्स प्रजाति ब्लूम (08-10 अक्टूबर 08)। भारतीय तथा विदेशी उपग्रहों दोनों पर उपलब्ध समुद्री रंग मॉनीटर सेंसरों का प्रयोग करते हुए ब्लूम की स्थानिक और कालिक परिवर्तनीयता को मॉनीटर करने का प्रयास जारी है। वसंत अंतर मानसून अवधि के दौरान गोवा से दूर (मई 2010) 25 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैले हुए सतह जल में सूखे पीले रंग की विवर्णता के साथ ट्राइकोडेसमियम एरिथ्रेडयम ब्लूम देखा गया। ब्लूम क्षेत्र में सतही क्लोरोफिल ए की सांद्रता और कोशिका सेल की घनता क्रमशः 12 मिलीग्राम घन मीटर और 2.93x106 तंतु एल -1 थी। अरब सागर में पोषण से रहित उच्च खारा पानी (एएसएचएसडब्ल्यू) ट्राइकोडेसमियम प्रजातियों के खिलने एक कार्योत्पादक कारक हो सकता है। यह भली भांति ज्ञात है कि ट्राइकोडेसमियम वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नियत कर सकते हैं और इसलिए वसंत अंतर मानसून के दौरान दक्षिण-पश्चिम तट पर ट्राइकोडेसमियम के खिलने की घटना महासागर में नाइट्रेट की रिसाइकिल के प्रति अनुकूलता हो सकती है। ग्रीष्म मानसून अवधि के दौरान कोच्चि से दूर ऑस्ट्रिोनेल्ल जेपोनिकाब्लूम देखा गया (जून, 2010) जिसकी सेल घनता को 5.5x 106 कोशिकाओं एल -1 पाया गया। खिलने वाले क्षेत्र के सतही जल में हरे रंग की विवर्णता को देखा गया। नाइट्रेट की कमी और फॉस्फेट की वृद्धि से इस पेन्नाते डायटम के खिलने की उम्मीद है।
समुद्री जीवन की जनगणना (सीओएमएल), वर्ष 2000 में शुरू की गई, जो समुद्री जीवन की विविधता, वितरण, और बहुतायत का आकलन करने और प्रकाश डालने वाला एक विश्वव्यापी वैज्ञानिक जनगणना अभियान है। भारत ने महासागरों में जीवन की जनगणना शुरू करने के लिए वर्ष 2010 में हिंद महासागर में सर्वेक्षण शुरू किया था। यह जनगणना प्राकृतिक परिवर्तनों और मानव कार्रवाई के बाद समुद्री जीवन के परिवर्तन को मापने के लिए उपयोगी होगी। वर्तमान में, इंडो बी आई एस में 48,422 प्रजातियों का रिकार्ड है।
लक्षद्वीप के अगात्ती द्वीप में व्यवसायीकरण हेतु 2009 में कावारत्ती में सजावटी मछली संवर्धन स्थापित किया गया था। लक्षद्वीप में अन्य गतिविधियों जैसे जीवित-चारा संवर्धन, मोती संवर्धन, जैव विविधता के अध्ययन, आदि का कार्य किया गया। न्यूकिलयस इम्पलैटेशन पर स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देते हुए अंडमान द्वीप समूह में काले मोती का उत्पादन सुदृढ़ किया गया है। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और मुख्यद्वीप में फिन मछलियों की खुले समुद्र पिंजरे में खेती करने के लिए खुले समुद्री पिंजरे का विकास, तैनाती और परीक्षण शुरू किया गया है। कावारत्ती द्वीप, लक्षद्वीप में, जैव रसायनों की निकासी के लिए निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण संयंत्र द्वारा छोडे गए समुद्र के पानी का उपयोग करते हुए फोटो बायोरिएक्टर में सूक्ष्म शैवाल का बड़े पैमाने पर संवर्धन शुरू कर दिया गया है।
पिजरों में लोबस्टर तथा मड क्रैब को मोटा बनाने के लिए एक व्यावहारिक प्रौद्योगिकी को सफलतापूर्वक विकसित किया गया था तथा इसे तमिलनाडु और अंडमान द्वीप समूह में मन्नार की खाड़ी में चुनिंदा लाभार्थियों को प्रसारित किया गया। इस योजना के कार्यान्वयन से तटीय मछुआरों के आमदनी में पर्याप्त सुधार हुआ है। समुद्री शैवाल संवर्धन तथा लोबस्टर और केकडे को मोटा बनाने के लिए इस प्रौद्योगिकी को मन्नार की खाड़ी में 100 से अधिक महिला लाभार्थियों और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 25 महिलाओं के लाभार्थियों तक बढ़ा दिया गया है।
परिवेश वायुमंडलीय दबाव तापमान के तहत, बेरोटोलेरेंट गहरे समुद्री रोगाणुओं की समझ को काफी हद तक विकसित किया गया है। समुद्री सूक्ष्म शैवाल से ल्यूटिन जैसे न्यूट्रास्यूटिकल्स के उत्पादन पर महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। जैव अवरोध के नियंत्रण के लिए प्रोटोटाइप प्लाज्मा पल्स प्रौद्योगिकी और प्लेट हीट एक्सजेर सतहों पर विकास जारी है।
76 स्थानों पर तटीय जल के साथ-साथ समुद्री प्रदूषण की व्यापक निगरानी की गई और यह पाया गया कि नगरों, शहरों और गांवों से अनुपचारित सीवेज के निपटान के कारण घुलित ऑक्सीजन में कमी और तट के निकट समुद्र में नाइट्रेट और रोगजनक जीवाणु में वृद्धि पाई गई। एकत्र किए गए डेटा से पता चला है कि समुद्र में प्रदूषण की समस्या 1 किमी की दूरी तक सीमित हैं सिवाए मुंबई के जहां प्रदूषण की समस्या समुद्र में तीन किलोमीटर तक है। मुंबई और चेन्नई के तटों के लिए तेल रिसाव के दौरान तेल के फैलाव की भविष्यवाणी के लिए मॉडल विकसित किया गया है। गोवा, केरल और विशाखापत्तनम के तटों के लिए इसी तरह के मॉडल विकसित करने के लिए काम शुरू कर दिया गया है।
तटरेखा प्रबंधन कार्यक्रम के तहत, गोपालपुर (उड़ीसा) मुठलंपोज़ही, वदनपल्ली और थ्रिस्सूर (केरल), देवबघ, पविन्दूरवे तथा कुन्दपुर कोडी (कर्नाटक) तथा गंगवरम (आंध्र) तट के साथ-साथ तटीय कटाव समस्या का व्यापक समुद्र वैज्ञानिक डेटा के साथ अध्ययन किया गया ताकि संबंधित राज्यों को उपाय उपलब्ध करवाए जा सके। तटीय रेखा को स्थिर करने हेतु संभावित इंजीनयरिंग उपायों को चिन्हित करने तथा इस पर कार्य करने के लिए पांडिचेरी, एन्नौर तथा श्रीहरिकोटा में फील्ड अध्ययन किए जा रहे है।
पारि प्रणाली मॉडलिंग पर बने कार्यक्रम के तहत,चिल्का तथा कोच्चि पश्चजल की जलगतिकी मॉडलिंग पूरी की गई। सुंदरवन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र मॉडलिंग हेतु फील्ड जांच शुरू कर दी गई है। तांबा, कैडमियम और पारे के लिए पानी की गुणवत्ता का मापदंड निर्धारित किया गया और इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजा गया । जोखिम मैपिंग, उपग्रह समुद्र विज्ञान, और समुद्री प्रदूषण पर 20 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
कई अनुसंधान प्रयोगशालाओं और विश्वविद्यालयों की भागीदारी के साथ मानव चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए समुद्री बायोटा से जैव सक्रिय द्रव्यों का दोहन करने के लिए एक कार्यक्रम लागू किया जा रहा है। मधुमेह रोधी, हाइपरलिपिडेमिक रोधी, मलेरिया रोधी, लेश्मानिअल रोधी, जीवाणुरोधी, फंगल रोधी, फाइलेरिया रोधी, ट्रीपनोसोमल रोधी, एचआईवी-रोधी, कैंसर रोधी, ऑस्टियोपोरोसिस रोधी, ट्यूबरकुलर रोधी, और समुद्री नमूनों के न्यूरो व्यवहार प्रभावों सहित व्यापक स्पैक्ट्रम जैव गतिविधि के लिए लगभग 2000 से अधिक समुद्री नमूनों की जांच की गई । सौ से अधिक हिट की पहचान की गई है, जिन्हें दोबारा संग्रह और अनुवर्तन द्वारा पुनर्मूल्यन की जरूरत है,
इसके अलावा, भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद द्वारा अन्य नए यौगिक की खोज की गई थी, और एक स्पंज (सिनोइकम्माक्टोग्लोस्सुम) से "बेटा कार्बोलिने व्युत्पन्न गुआनिदिने एल्कलॉइड, ट्राइकेंड्रूरामिने" और संजातों (2-20), पर सीएसआईआर और मंत्रालय को संयुक्त रूप से अमेरिकी पेटेंट प्रदान किया गया है। ये यौगिक मधुमेह की परिस्थितियों के इलाज के लिए ग्लूकोसिडस इन्हिबिटर्स के रूप में उपयोगी है शामिल हैं, जो कि डाईबीटिज मैनीटस के पोस्ट प्रान्डेयल हाइपर ग्लाइसे किया और मैक्रो-वैस्कुयूलन जटिलताओं तक सीमित नहीं है।
Last Updated On 11/27/2015 - 10:22 |